श्रीहरि लक्ष्मीनारायण मंदिर शेसम्बा जहानाबाद

लक्ष्मीनारायण मंदिर शेसम्बा

 
श्रीहरि प्राचीन लक्ष्मीनारायण मंदिर शेसम्बा: पौराणिक गौरव, दिव्य चमत्कार, और सांस्कृतिक उत्सवों का अमूल्य केंद्र

जहानाबाद जिले के शकुराबाद थाना क्षेत्र के शेसम्बा गांव में स्थित श्रीहरि प्राचीन लक्ष्मीनारायण मंदिर सदियों से न केवल स्थानीय लोगों की अटूट आस्था और भक्ति का केंद्र रहा है, बल्कि यह बिहार की सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक विरासत का एक अनमोल रत्न भी है। यह मंदिर अपनी प्राचीनता, अद्वितीय मूर्तियों, रहस्यमय घटनाओं और उससे जुड़ी पौराणिक कथाओं के कारण क्षेत्र की पहचान है, जो आज भी श्रद्धालुओं के दिलों को गहराई से छूता है।

कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद जब पांडवों ने अपने न्यायपूर्ण राज्य की स्थापना की, तब वे अपने गुरु और देवताओं की पूजा-अर्चना हेतु तीर्थ स्थलों की यात्रा पर निकले। इस यात्रा के दौरान वे आज के बिहार के शेसम्बा क्षेत्र में पहुँचे, जो उस समय घने जंगलों और प्राकृतिक शांति से भरा था।
 उनकी आध्यात्मिक अनुभूति इतनी गहरी थी कि उन्होंने इस स्थान को धर्म, भक्ति और समृद्धि का केंद्र बनाने का संकल्प लिया। इस स्थल पर उन्हें  एक सफेद, दुर्लभ और कीमती पत्थर मिली, जिससे उन्होंने एक  भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की संयुक्त मूर्ति बनाई गई — एक अनोखा स्वरूप जो एक ही पत्थर से तराशा गया। यह मूर्ति श्रद्धालुओं के लिए असीम भक्ति और सम्मान का विषय बनी। रात्रि में अचानक उन्हें स्वप्न आया और स्वप्न में श्री नारायण पांडवों को बोले कि हमसे पूर्व हमारे आराध्य महादेव की स्थापना तथा उनकी प्राण प्रतिष्ठा की जाए उसके उपरांत हम दोनों की स्थापना करें।
फिर इसी स्थान पर पांडवों ने भगवान शिव की भी एक मूर्ति स्थापित की क्योंकि भगवान शिव और भगवान विष्णु एक दूसरे के भक्त है। लंबे समय उपरांत जब यहां लोग बसने लगे तो समय के साथ खेती भी जरूरी था तो ग्रामीणों ने खेत जोतना चालु की ताकि अनाज उपजे, जब हल चला ही रहे थे कि तभी उनके हल से कुछ टकराया,तो लोग उस जगह की खुदाई की तो वही भगवान शिवजी का शिवलिंग खेत में हल चलाते हुए मिली जो लाल पत्थर से निर्मित था,लोगों में उत्साह भर गया और पुनः उस शिवलिंग की स्थापना ग्रामीणों ने किया।

मंदिर की दिव्यता का एक अन्य प्रमाण है। जब समय के
 साथ यह मंदिर थोड़ा थोड़ा टूटने लगा किंतु आश्चर्य की
 बात यह कि स्थापित मूर्ति को थोड़ा भी नुकसान नही हो रहा था, इसमें कभी बाढ़ अगर आती तो पानी अंदर की गर्भगृह तक चला जाता,तो मंदिर जर्जर हो रहे थे तो मंदिर की ऐसी हालत हो गयी कि लोग गिरने के डर से बहुत कम भीड़ लगने लगा। 
बहुत बार मंदिर का जीर्णोद्धार के लिए अधिक मात्रा में पैसे की व्यवस्था हुई लेकिन असमाजिक तत्वों ने उन पैसों का गमन कर लिया और जीर्णोद्धार वैसा ही रहा, जब ऐसी इस्थिति आयी बार बार रुकावट तो जब पानी सर से ऊपर हो गया अर्थात जब वो तत्वों ने अति कर दी तो गाँव के कुछ नवयुवकों ने यह फैसला किया कि इस मंदिर का जिर्णोधार अब वो लोग ही करेंगे। 
किंतु कहते है न कि जब कुछ अछि चीजे करनी हो तो भगवान परीक्षा लेते ही है, तो सब नवयुवकों के साथ भी यही हुआ जब लोग सोचे तो उन्हें उसी गाँव के असमाजिक तत्वों ने जीर्णोद्धार रोकने की बहुत कोशिश की रुकावट तो आयी लेकिन कहते है न जब निश्चय दिढ़ हो भगवान भी राह दिखाते है,समाज से लड़कर उन सभी ने आखिर सफलता प्राप्त की और मंदिर का जीर्णोद्धार 2020 में कराया। 
सबसे बड़ी बात यह कि जीर्णोद्धार के दौरान एक और जबरदस्त घटना घटी, जब मंदिर जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा था तो अचानक मंदिर की दीवार से प्रकट हुई भगवान सूर्य की मूर्ति जो काले कीमती पत्थर से बना था। यह घटना श्रद्धालुओं के लिए दैवीय संकेत थी कि मंदिर आज भी अपनी पवित्रता और आध्यात्मिक शक्ति से ओतप्रोत है। 
मंदिर क्षेत्र से जुड़ा एक रहस्यमय नाग (शेषनाग)भी चर्चित है, जिसे केवल अत्यंत भाग्यशाली भक्त ही देख पाते हैं। इसे मंदिर का दिव्य संरक्षक माना जाता है, जो इसे आने वाले संकटों से बचाता हैइन रहस्यों और चमत्कारों ने मंदिर की पवित्रता और विश्वास को सदियों से जीवित रखा है।
प्रतिमा श्री लक्ष्मीनारायण





1914 की जनगणना रिपोर्ट जैसे ऐतिहासिक दस्तावेजों में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है, जो इसकी प्रामाणिकता और सामाजिक-धार्मिक महत्व को पुष्ट करते हैं। उस समय के बुजुर्गों और विद्वानों द्वारा इस मंदिर का इतिहास और पूजा विधि दर्ज कराई गई थी, जो आज भी स्थानीय परंपराओं में जीवित हैं।

मंदिर का हाल ही 2019-20 में किया गया जीर्णोद्धार आधुनिक कला और तकनीकी लिपि/शैली के आधार पर हुआ, जिससे मंदिर की पुरानी भव्यता और आध्यात्मिक महत्ता पुनः जागृत हुई। जीर्णोद्धार ने इसकी संरचना को मजबूती प्रदान की और भक्तों के लिए इसे और अधिक आकर्षक बनाया। 
श्रीहरि प्राचीन लक्ष्मीनारायण मंदिर न केवल पूजा-अर्चना का केंद्र है, बल्कि स्थानीय समुदाय के लिए सांस्कृतिक मेल-जोल और सामाजिक समरसता का माध्यम भी है। यहाँ मनाए जाने वाले प्रमुख धार्मिक त्योहारों में जन्माष्टमी और होली दीपावली खास स्थान रखते हैं। जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिर जीवंत हो उठता है, जहाँ भक्तजन रंग-बिरंगी सजावट, भजन-कीर्तन और झांकियों के साथ भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव का उल्लास मनाते हैं।

दीपावली पर मंदिर दीयों की रौशनी से जगमगा उठता है,
 और माता लक्ष्मी की पूजा के साथ इस प्रकाश के पर्व की धूम रहती है। ये त्योहार न केवल आस्था को बढ़ाते हैं, बल्कि स्थानीय लोगों को एकजुट भी करते हैं।
श्रीहरि प्राचीन लक्ष्मीनारायण मंदिर शेसम्बा इतिहास, आस्था, चमत्कार और सांस्कृतिक समृद्धि का अद्भुत संगम है। इसकी विरासत हमें हमारी जड़ों से जोड़ती है
 और दर्शाती है कि विश्वास, भक्ति और सामाजिक एकता समय के साथ हमेशा जीवित रहती है।

हम सभी की जिम्मेदारी है कि इस धरोहर का संरक्षण करें, इसके चमत्कारों और परंपराओं को संजोएं, और इसकी महत्ता को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं, ताकि इसका प्रकाश सदैव जारी रहे।


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